बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
सामाजिक परिवर्तन के जैविकीय कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
जैविकीय कारकों के प्रभाव का मूल्यांकन
(Evaluation of the Impact of Biological Factors)
वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन के एक कारक के रूप में जैविकीय दशाओं का प्रभाव तेजी से कम होता जा रहा है। यही कारण है कि आज अनेक विद्वान सामाजिक परिवर्तन की विवेचना में जैवकीय कारकों को कोई महत्व हीं देते है। जैविकीय कारक को हम निम्नलिखित दशाओं एवं विचारों के आधार पर समझ सकते है.
1. जैविकीय कारक 'अस्तित्व के लिये संघर्ष' एवं योग्यतम प्राणी के अतिजीवन' की अवधारणा पर आधारित हैं। वास्तव में, आज के जीवन में यह कह सकना बहुत कठिन है कि जीवित रहने के लिये व्यक्ति सबसे अधिक योग्य है। प्राकृतिक प्रवरण के अनुसार प्रकृति दुर्बल प्राणियों का निरसन कर देती है, जबकि शक्तिशाली लोगों में जीवित रहने के लिये कौन व्यक्ति सबसे योग्य है। प्राकृतिक प्रवरण के अनुसार प्रकृति दुर्बल प्राणियों का निरसन कर देती है, जबकि शक्तिशाली लोगों को जीवित रहने के लिये छोड़ देती है। इसके विपरीत, युद्ध की स्थिति में शक्तिशाली व्यक्तियों की मृत्यु सबसे अधिक संख्या में होती है। इससे यह स्पष्ट होता है सबसे अधिक योग्य प्राणी की अवधारणा अस्पष्ट है।
2. ऑगर्बन ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि मानव समाज में मृत्युदर केवल प्राकृतिक दशाओं से ही प्रभावित नहीं होती। जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान अपनी प्रगति करता जा रहा है, मनुष्य भी प्रकृति से संघर्ष करने में अधिक सक्षम होता जा रहा है। यह चिकित्सा जगत की प्रगति का ही परिणाम है कि आज मानव जीवन की अवधि पहले की तुलना में अधिक हो गयी है।
3. वर्तमान समय में मनुष्य प्रकृति का दास नहीं है बल्कि अपनी बुद्धि बल एवं नये अविष्कारों के द्वारा उसने एक ऐसी संस्कृति को विकसित किया है जिसमें जीवित रहने के लिये प्रकृति से संघर्ष करना आवश्यक नहीं रहा है। मानव समाज में होने वाले संघर्ष व्यक्तियों के मध्य उतने नहीं होते जितने की विभिन्न समूहों के मध्य होते हैं। इस तरह के संघर्षों में अक्सर वह व्यक्ति भी जीवित रहते हैं जिन्हें प्राकृतिक प्रवरण के अनुसार जीवित रहने के लिये योग्यतम प्राणी नहीं कहा जा सकता है।
4. मैकाइवर एवं पेज के अनुसार सामाजिक परिवर्तन की विवेचना में प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त बिलकुल अनुपयुक्त है। आपके अनुसार प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त केवल तभी लागू हो सकता जब मनुष्य का जीवन पूरी तरह प्राकृतिक दशाओं से प्रभावित हो। इसके विपरीत, आज दुर्गम तथा बीहड़ स्थान भी रहने के योग्य बन गये हैं, ऊँचे-ऊँचे पर्वतों एवं समुद्र की गहराईयों के मध्य भी मनुष्य का आना- जाना सम्भव है। विज्ञान की सहायता से अधिकांश प्राकृतिक रहस्यों को समझा जा चुका है। इस दशा में केवल प्राकृतिक अथवा जैविकीय दशाएँ ही मानव के अस्तित्व को प्रभावित नहीं करतीं।
5. इस सिद्धान्त के अनुसार प्राकृतिक प्रवरण की प्रक्रिया तभी लागू होती है जब जन्मदर जीवित रहने के लिए व्यक्तियों के मध्य संघर्ष होता है। व्यावहारिक रूप से संघर्ष प्रत्येक समाज में सदैव चलता रहता है। जन्मदर कम अथवा अधिक होने से इन संघर्षों को दूर नहीं किया जा सकता।
6. जैविकीय कारक यह बतलाते हैं कि किसी भी समाज में अधिक अथवा कम मृत्युदर का कारण प्राकृतिक प्रवरण की प्रक्रिया है। आधुनिक युग में मृत्यु का कारण प्राकृतिक प्रवरण की प्रक्रिया नहीं बल्कि दोषपूर्ण सामाजिक दशाएँ हैं। उदाहरण के लिये, बढ़ता हुआ प्रदूषण, कारखानों में काम करने की असुरक्षित दशाएँ, गन्दी बस्तियाँ, सामाजिक शोषण, नशीले पदार्थों का सेवन एवं सामाजिक संकट आदि वह प्रमुख सामाजिक दशाएँ हैं जो मृत्युदर में वृद्धि करती है। इन दशाओं से बढ़ने वाली मुत्युदर को केवल सामाजिक आधार पर स्पष्ट किया गया है, जैविकीय आधार पर नहीं। इसी आधार पर मार्गन ने लिखा है कि, "सभ्य मानव के जीवन में जैविकीय कारकों का प्रभाव तेजी से कम होता जा रहा है।'
7. इस सिद्धान्त के अनुसार जीवित रहने के लिये योग्य अर्थात् शक्तिशाली एवं धनी लोगों में प्रजनन दर अधिक होनी चाहिये, जबकि अस्वस्थ दशाओं में जैसे- गन्दी एवं मलिन बस्तियों में रहने वाले निर्धन परिवारों जन्म दर कम होनी चाहिये। वास्तविक स्थिति में दशा इससे बिल्कुल विपरीत है। धनी एवं शक्तिशाली लोगों में अस्वस्थ तथा दुर्बल लोगों की तुलना में जन्मदर बहुत कम पायी जाती है। इसका तात्पर्य है कि प्राकृतिक प्रवरण के सिद्धान्त के अनुसार वर्तमान जीवन में यह नहीं कहा जा सकता कि किसे 'योग्य' कहा जाय तथा किस अयोग्य माना जाये।
मानव समाज पर विभिन्न जैविकीय कारकों के प्रभाव को विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैसे-जैसे मुनष्य पर प्रकृति का नियन्त्रण बढ़ता जाता है एवं चिकित्सा विज्ञान का विकास होने से मानव की जीव रचना से सम्बन्धित ज्ञान बढ़ता जा रहा है, सामाजिक परिवर्तन की विवेचना में जैविकीय कारकों का महत्व कम होता जा रहा है। वास्तव में, जीवित रहने अथवा अस्तित्व के संघर्ष के लिये आज प्रकृति से अनुकूलन करना उतना आवश्यक नहीं है जितना की समाज से अनुकूलन करना। जो व्यक्ति समाज से अनुकूलन नहीं कर पाते (जैसे- अपराधी अथवा आतंकवादी बन जाते हैं), समाज उनका निरसन कर देता है। दूसरी ओर, समाज द्वारा उन लोगों का विलयन करके उन्हें आगे बढ़ने के अधिक से अधिक अवसर प्रदान किये जाते हैं जो सामाजिक दशाओं से अपना अनुकूलन कर लेते हैं। इस आधार पर मैकाइवर एवं पेज ने सामाजिक प्रवरण की अवधारणा (Concept of social selection) प्रस्तुत की। सामाजिक प्रवरण की अवधारणा का सम्बन्ध सभ्यता के विकास से है। जैसे-जैसे सभ्यता तथा संस्कृति का विकास होता जाता है, मानव जीवन पर प्राकृतिक तथा जैविकीय दशाओं का प्रभाव कम होकर सामाजिक दशाओं का प्रभाव बढ़ता जाता है। आज महामारियों को रोकने तथा अनुपजाऊ भूमि को भी खेती योग्य बनाने में मनुष्य ने सफलता प्राप्त की। एक दुर्बल तथा अपंग व्यक्ति भी समाज से अनुकूलन करके लम्बे समय तक जीवित रह सकता है। सामाजिक प्रवरण प्रत्यक्ष भी हो सकता है एवं अप्रत्यक्ष भी। परिवार नियोजन, विलम्ब विवाह, हिंसा के विरुद्ध कानून एवं चिकित्सा सुविधायें जन्मदर पर नियन्त्रण रखने के तरीके है जो प्रत्यक्ष सामाजिक प्रवरण के उदाहरण है। अप्रत्यक्ष सामाजिक प्रवरण का सम्बन्ध उन दशाओं से है जिनका उद्देश्य जन्म एवं मृत्यु दर का प्रभावित करना नहीं होता लेकिन जिनके फलस्वरूप जन्म एवं मृत्युदर में अपने आप परिवर्तन होने लगता है। उदाहरण के लिये शिक्षा तथा रहन-सहन के स्तर में होने वाली वृद्धि से अपने आप जन्मदर तथा मृत्युदर दोनों में ही कमी होने लगती है। उदाहरण के लिये शिक्षा तथा रहन- सहन के स्तर से होने वाली वृद्धि से अपने आप जन्मदर एवं मृत्युदर में कमी होने लगती है। तात्पर्य यह है कि जैविकीय कारकों की तुलना में आज व्यक्ति को सामाजिक दशाओं से अनुकूलन करना अधिक आवश्यक है। यही कारण है कि सामाजिक परिवर्तन की विवेचना में जैविकीय कारकों को आज अधिक से अधिक एक अप्रत्यक्ष कारक के रूप में मान्यता दी जा सकती है।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?